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Jabr ka Gawah




किसी की बेख़बरी को नादानी समझा जाता है
तो कोई लापरवाह हो जाता है
अगर आप करें ग़लती तो माफ हो जाती है
अगर हम करें तो गुनाह हो जाता है।

आधी रात को आते हैं फतवे आपके 
जो रात कर देते हैं हराम बची हुई
आधी जान तो कील पर टंगी हुई है
आप टांग दो तमाम बची हुई।

ख़ता करने पर तय होता है कि
सजा-ए-ख़ता क्या है
अगर पता हो तो क्यूं हो ख़ता 
मगर ख़ता से पहले पता क्या है?

नादान ख़ता को चाहिए नसीहत एहतियात की
पर ऊंचे जिनके ओहदे क्यूं क़दर करें जज़्बात की

मुंसिफ के मन मुताबिक बनते है क़ानून 
फ़र्ज़ के फंदों में फंसे रहते है मज़लूम।

इजाद ख़्याली और चालाकी में फर्क क्या है
हक की आवाज़ और गुस्ताख़ी में फर्क क्या है?

अबे बहुत बोलना भी बेअदबी है बवाल मत करो
जो कासिब कहते हैं सुनो सुनो सवाल मत करो

सुनो श्याम सबर का पादरी नहीं रहता 
जो जबर का गवाह हो जाता है
अगर आप करें गलती तो माफ हो जाती है
अगर हम करें तो गुनाह हो जाता है।

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