ग़ज़ल Ghazal 3
ग़ज़ल Ghazal 3
जैसा मिलता है उससे मन बहला लेता हूँ
ज़िन्दगी में ज़िन्दगी से काम चला लेता हूँ,
यूँ तो जहाँ में बहुत शिकायतें भरी पड़ी हैं
कामयाबी की सोच से रोटी गला लेता हूँ,
यूँ तो दुनिया में ग़म ही ग़म फैला हुआ है
ज़रा सा मुस्करा कर मैं ग़म भुला लेता हूँ,
जानता हूँ, कोई ना समझेगा मेरे जज़्बात
इसलिए अब मैं खुद से ही बतला लेता हूँ,
दोस्ती के नाम पर कारोबार होता है यहाँ
सो ‘श्याम’ खुद से ही हाथ मिला लेता हूँ।
~श्याम सुन्दर —
Comments:
Nice one ☝☝
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