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ग़ज़ल - रंग साँवला Ghazal 2

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हाँ! मैं मानता हूँ  कि मेरा रंग साँवला है
चलो रंग है, काली नीयत से तो भला है;

सबूत मेंने एहसानों के टुकड़े नहीं खाए
मुश्किल हालात में मेरा बचपन पला है;

निशानी है मेरे परिवेश की मेरे प्रदेश की
जिसके मोहब्बत में मेरा तन मन ढला है;

धूप ने तो शायद  मेरा चेहरा ही जलाया
नफरत की आग में मेरा दिल भी जला है;

औरों की  तरह हम आरक्षण नहीं चाहते
हमे बस ‘श्याम’ ये असम्मान ही खला है।

~श्याम सुन्दर

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