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Badalte Halat

बदलते हालात
मैंने देखा है। 
मैंने अपनों को दूर-दूर होते देखा है
मैंने सपनों को चूर-चूर होते देखा है,
मैंने दिल में ग़म, चहरे पर हँसी देखी है  मैंने चहरे पर ग़म, दिल में हँसी देखी है ।
मैंने 30 यार्ड में रहने वाली बॉल को
मैदान से बाहर जाते देखा है;
मैंने पुल शॉट मारने वालों को
बैकफुट डिफैंड पर आते देखा है।
मैंने देखा है। 
मैंने पुरानी किताबों पर ज़िल्द देखी है 
वर्दी की पेंट को लम्बी कराते देखा है, 
मैंने प्याज को सलाद से सब्जी में 
और सब्जी से चटनी में आते देखा है। 
सुबह दूध के साथ बिस्किट से लेकर 
जलेबी और रोटी तक का सफर; 
माउंटेन ड्यू से गुलाब शर्बत तक 
चाय की प्याली छोटी तक का सफर। 
मैंने देखा है। 
सरकार के झूठे दिलासे, झूठे वादे 
झूठे काम, झूठे विवाद मैंने देखें है; 
किसान को उजड़ते, रोते-बिलखते 
ये सारे बदलते हालात मैंने देखें है। 
उन लोगों को भी बचाते देखा है मैंने 
जो कभी खुलकर पैसा खरचते थे;
मैंने उस धरा से पानी निकलते देखा है 
जहाँ के लोग पानी के लिए तरसते थे। 

~श्याम सुन्दर। 

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A poem for farmers of Northern Rajasthan. Their land was ruined by the SEM problem.

This post is licensed under CC BY 4.0 by the author.